Thursday, December 2, 2010

jeevan ka moolya

                                                        
जीवन   का  मूल्य 


       




    
क्यूँ   करते  हो  छह  किसी  की 

कौन  तुम्हे  मिल   जाएगा   ,

सारा  जीवन  तिल -तिल जलकर 

एक  दिन  पूरा  जल  जाएगा  .


फिर  भी  दुनिया  वालों  को 

तुम  पर  तरस  न  आएगा ,

हँसते  है  ये  हँसते रहेंगे   

तू   ही  रोता  जाएगा .


मान  ले  अब  भी मेरा   कहना 

नहीं  तो  फिर पछताएगा ,

है अमूल्य  यह  मानव   जीवन

फिर न लौट  के  आएगा .



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3 comments:

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  2. बहुत सुन्दर रचना , पर हम इंसान हैं ही ऐसे बिना चाह के जी नहीं पाते...
    सुशीला जी ....शायद रचना में एक त्रुटी है चाह को छह लिखा गया है गलती से....अगर छह है तो ठीक है नहीं तो उसे EDIT कर दें PLS

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